Saturday, July 08, 2006

क्योंकि सपना है अभी भी

धरमवीर भारती को हिन्दी साहित्य के युवा रचयिताओं में गिना जाता है। उनकी शैली अत्यन्त नवीन एवं जोशीली है। उनकी रचनाओं में से "गुनाहों का देवता", "सूरज का सातवां घोड़ा" इत्यादी प्रमुख हैं।
यहां पर मैं भारती की एक काव्य रचना पर रोशनी डालने का प्रयास करूंगा। यदी आपने "लक्ष्य" देखी है तो आपको इस कविता की सुन्दरता बहुत आसानी से उजागर होगी। लक्ष्य में ऋतिक रोशन ने करण शेरगिल का किरदार निभाया है, जिनकी प्रियसी रोमीला दत्ता का किरदार प्रिती ज़िँटा ने निभाया है। करण को रोमी अपनी ज़िन्दगी से इसलिये निकाल फैंकती है क्योंकी करण के जीवन में कोई लक्ष्य नही है। उसके बाद करण अपने लक्ष्य को ढूँढकर सिर्फ उसीकी दिशा में बढ़ जाता है। भारती जी की इस काव्या रचना "क्योंकी" का सन्दर्भ लक्ष्य में वहां मिलता है जहां करण युद्ध के मैदान में घायल अवस्था में भी लड़ता जा रहा है।

क्योंकि

...... क्योंकि सपना है अभी भी -
इसलिए तलवार टूटे, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशायें,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल,
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...... क्योंकि है सपना अभी भी!

तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा,
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा,
विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा)
किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी भी
...... क्योंकि सपना है अभी भी!

तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो
और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है - दिशाएँ, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी

इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल,
कोहरे डूबी दिशाएँ,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध-धुमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...... क्योंकि सपना है अभी भी!

- धर्मवीर भारती

संदर्भ-

...... क्योंकि सपना है अभी भी -
इसलिए तलवार टूटे, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशायें,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल,
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...... क्योंकि है सपना अभी भी!
करण युद्ध के मैदान में घायल पड़ा है और अपने लक्ष्य-प्राप्ती के सपने को जीवित रखने का प्रयास कर रहा है।



तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा,
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा,
ऐशो-आराम की ज़िन्दगी छोड़ कर जब करण ने अपने चारों ओर के मायाजाल को तोड़ा तो उसके पास इस सपने के अतिरिक्त कुछ नही था।

विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा)
रोमी ने उसे अपने जीवन से बाहर फेंक उसके अंदर जो आग लगा दी थी, आज वह खुद उस आग को भूल गयी है।

किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी भी
...... क्योंकि सपना है अभी भी!
लेकिन करण तो आज तक उस आग में तप रहा है। उसके जीवन में उसके सपने को गर्म रखने वाली इस आग के अतिरिक्त कुछ नही है।


तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो
आज रोमी की गैरहाज़री में करण अकेला और घायल है, परंतु यह रोमी की आवाज़ ही है जो उसके साहस को जीवित रखती है।

और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है - दिशाएँ, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी
यही आवाज़ है जो इस मृत्यु-निकट पल में उसे याद दिलाती है कि उसकी यह अवस्था उसकी हार नहीं है। अपितु, अभी भी वह रोमी का अपना है, क्योंकी उसने अपने लक्ष्य, अपनी आग को जीवित रखा है।


इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल,
कोहरे डूबी दिशाएँ,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध-धुमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...... क्योंकि सपना है अभी भी!
यह पंक्तियाँ तो अपनी कहानी स्वयं ही कहती है।

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